Thursday, May 22, 2025
editor

about editor suresh mahapatra

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के पुरोधा पत्रकारों में शामिल एक नाम सुरेश महापात्र का है। जिनका जन्म 19 फरवरी 1971 को बस्तर जिला के तोकापाल ब्लाक के एक ग्रामीण इलाके में हुआ। वे बेहद संघर्षशील जीवन को जीते हुए पत्रकारिता के क्षेत्र में 1989 से सक्रिय हैं। पहले वे ग्रामीण पत्रकार के तौर पर क्रियाशील रहे। उसके बाद बस्तर जिला से प्रकाशित सबसे पुराने हिंदी दैनिक समाचार पत्र दंडकारण्य समाचार में नगर प्रतिनिधि के तौर पर सेवाएं दी। इसके बाद वे देशबंधु समूह से जुड़कर 1999 तक जगदलपुर में सक्रिय रहे।

1999 में ही देश के सबसे बड़े समाचार पत्र समूह दैनिक भास्कर में जगदलपुर में बतौर सिटी रिपोर्टर जुड़े इसके बाद दैनिक भास्कर में ही विभिन्न संपादकीय पदों में क्रियाशील रहे। 2003 में सुरेश महापात्र दंतेवाड़ा ब्यूरो प्रमुख के तौर पर कार्यभार संभाला। उस दौरान बस्तर इलाके में आदिवासियों के सबसे बड़े विद्रोह सलवा जुड़ूम की रिर्पोटिंग की।

सुरेश महापात्र ने दैनिक भास्कर से अपनी श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए कई बार सम्मान भी हासिल किया। कोरबा प्रेस क्लब ने उन्हें उनकी पत्रकारिता के लिए पुरस्कृत करने की घोषणा की। कोरबा प्रेस क्लब छत्तीसगढ़ के ख्यातिलब्ध पत्रकार व वरिष्ठ संपादक रमेश नैयर के साथ उन्हें सम्मानित करना चाह रही थी। पर इस कार्यक्रम में दैनिक भास्कर प्रबंधन की सहमति ना होने के कारण शामिल नहीं हो सके।

बस्तर संभाग के अबूझमाढ़ से लेकर बीजापुर और सुकमा इलाके के चप्पे—चप्पे पर सुरेश महापात्र ने जान को जोखिम में डालकर शानदार पत्रकारिता की है। सलवा जुड़ूम अभियान के दौरान वे कई पदयात्राओं में शामिल रहे। इसकी लाइव रिपोर्टिंग की। दैनिक भास्कर में संपादक प्रदीप कुमार के कार्यकाल में लगातार 16 दिन तक आल एडिशन बाई लाइन फ्रंट पेज रिपोर्ट प्रकाशित होने का उनका अपना एक रिकार्ड है।

सन 2006 में सुरेश महापात्र माओवादियों की धमकी के चलते जगदलपुर स्थानांतरित किए गए। माओवा​दी अपने इलाके में उनके खिलाफ हो रही रिपोर्टिंग के नाराज थे। तत्कालीन संपदाक दिवाकर मुक्तिबोध ने इसके बाद सुरेश महापात्र को जगदलपुर संभागीय ब्यूरो प्रमुख के पद पर पदोन्नत कर दिया। पर जंगल और आदिवासियों की रिपोर्टिंग के जुनून में सुरेश महापात्र ने पुन: दंतेवाड़ा में वापसी की। माओवादियों के द्वारा धमकी दिए जाने के बाद एनडीटीवी ने सुरेश महापात्र पर एक रिपोर्ट भी प्रसारित की।

स्वतंत्र तौर पर अपनी पत्रकारिता करने के लिए दक्षिण बस्तर से बस्तर इम्पेक्ट नामक हिंदी दैनिक समाचार पत्र बस्तर इम्पेक्ट का प्रकाशन 2008 में प्रारंभ किया। इस समाचार पत्र ने डेढ़ दशक का फासला पूरा कर लिया है।

बस्तर इम्पेक्ट के संपादक के तौर पर सुरेश महापात्र ने बस्तर इलाके की शानदार रिपोर्टिंग का इतिहास दर्ज किया है। वे एक शानदार लेखक और पत्रकार हैं। राजनीति और अपराध के साथ सामाजिक विषयों पर उनकी लेखनी शानदार रही है। विश्लेषणात्मक अध्ययन और उसके आधार पर उनके कई कालम नियमित तौर पर प्रकाशित होते रहे हैं।

दंतेवाड़ा और बस्तर से होते हुए सुरेश माहापात्र की कई टिप्पणियों को बीबीसी, टाइम्स आफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस जैसे राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में स्थान प्राप्त हुआ है। उत्तर भारत के प्रमुख समाचार पत्र अमर उजाला में सुरेश महापात्र की संपादकीय टिप्पणियां प्रकाशित हुई है।

2013 में माओवादियों के हमले के बाद माओवादियों के मामले में सुरेश महापात्र ने लगातार कई संपादकीय टिप्पणियों में सशस्त्रबलों की कमियों पर ध्यान दिलाने का काम किया। मुठभेड़ों में जवानों की शहादत के बाद उस इलाके की रिपोर्ट में वे हमेशा बलों की कमजोरियों को रेखांकित करने का काम करते रहे हैं। अब जब बस्तर में माओवादियों के खिलाफ सशस्त्रबलों को लगातार सफलता मिल रही है। तो वे कामयाबी को रेखांकित करते हुए सावधानी के लिए अपनी संपादकीय टिप्पणियों में सलाह भी देते है।

2017 में सुरेश महापात्र ने डिजिटल प्लेटफार्म में सीजीइम्पेक्ट.ओआरजी वेबसाइट का संचालन प्रारंभ किया। इसके माध्यम से वे लगातार खोजी खबरें और अपनी राजनीतिक टिप्पणियों को प्रकाशित करते रहे हैं। दबी जुबां से, मुद्दा, आज—कल जैसे कई कालम नियमित तौर पर प्रकाशित होते हैं।

कोविड के दौर में सुरेश महापात्र ने लगातार सरकार पर जनहित के लिए दबाव बनाए रखा। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार और राजनीति गतिविधियों को लेकर सुरेश महापात्र की टिप्पणियों को पूरे प्रदेश में वैचारिक तौर पर प्रमुखता से ध्यान दिया जाता है।

2009 के लाइव मिंट लेख में, महापात्रा ने दिल्ली स्थित पत्रकारों से मीडिया के बढ़ते ध्यान के बारे में आशा व्यक्त करते हुए कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि आखिरकार दिल्ली से पत्रकार बस्तर आ रहे हैं। एक चौथाई सदी से, यहाँ नक्सली आंदोलन की शुरुआत के बाद, इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। अब यहाँ के मुद्दे और सच्चाई को सही तरीके से पेश किया जाएगा।”

यह बस्तर की कहानियों को व्यापक दर्शकों तक पहुँचाने की उनकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है, भले ही उग्रवाद और सीमित बाहरी जाँच वाले क्षेत्र में काम करने की कठिनाइयाँ हों। इसके अतिरिक्त, महापात्र को अन्य संदर्भों में संदर्भित किया गया है, जो एक अनुभवी स्थानीय रिपोर्टर के रूप में उनके दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हैं।

आशुतोष भारद्वाज (2020) की द डेथ स्क्रिप्ट में, उन्हें संघर्ष के लंबे समय तक संपर्क में रहने से होने वाली असंवेदनशीलता पर विचार करते हुए उद्धृत किया गया है: “आप लोग नए हैं, इसलिए आप एक कलेक्टर के अपहरण को बहुत महत्व देते हैं। क्या जंगल में लापता हुए लोगों का कोई विवरण है? अगर कोई और गायब हो जाता है तो इससे किसी पर क्या असर पड़ेगा?” यह अलगाव उस जगह से रिपोर्टिंग के नुकसान को रेखांकित करता है, जहां हिंसा और गायब होना आम बात है।

https://www.amarujala.com/columns/opinion/where-we-fail-to-deal-with-naxalite https://www.amarujala.com/columns/opinion/why-not-bastar-in-crntre-of-power https://www.amarujala.com/columns/opinion/naxalism-problem-in-india

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *